Andrew carnegie By Pradeep thakur

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  • Author Name : Pradeep Thakur

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About Book : पहले बनाया इस्पात साम्राज्य, फिर दिया धन का शुभ संदेश ,एंड्रयू कानेंगी कार्य-कुशलता से अटूट प्यार करता था। जब से कानेंगी ने इस्पात उद्योग में कदम रखा था, तभी से अपने कारखानों को तकनीकी रूप से उन्नत बनाने की कोशिशें शुरू कर दी थीं। यही कारण था कि जल्द ही कानेंगी स्टील समूचे इस्पात उद्योग के लिए उदाहरण बन गई थी। रॉकफेलर की तरह कानेंगी में भी उचित अवसर को परखने और जोखिम आकलन की अलौकिक क्षमता थी। तभी तो यह बाजार मंदियों के दौरान बीमार  इस्पात कारखानों को खरीदने का सिलसिला जारी रखे हुए था और उन्हें अपनी प्रबंधन कुशलता से लाभकारी इकाइयों में बदल पाने में सक्षम हुआ था। जी हाँ, 19वीं सदी के अंत में एंड्रयू कानेंगी 70 प्रतिशत अमेरिकी इस्पात उद्योग को नियंत्रित करने लगा था। अभी इस्पात उद्योग में कदम रखे उसे ढाई दशक ही हुए थे। उस समय के अधिकांश सफल उद्यमियों की तरह एंड्र्यू कार्नेगी भी कठिन परिश्रम व लगन की बदौलत एक निहायत गरीब पृष्ठभूमि से बाहर आया था। लेकिन बेहद कम समय में आश्चर्यजनक सफलता हासिल करने के लिए कार्नेगी ने क्या किया था? जी हाँ, अपनी आलौकिक व्यावसायिक सूझ-बूझ के अलावा कानेंगी ने भी अपने कई समकालीन पूँजीपतियों की तरह सारे एकाधिकारवादी हथकंडे अपनाए थे यह भी शातिर व्यवसायी था, लेकिन जॉन डी. रॉकफेलर की तरह सार्वजनिक रूप से बदनाम होने से बच गया था। आम धारणा यही है कि वह पढ़ने का शौकीन था और बौद्धिकता में भरोसा रखता था, इसलिए उसने हजारों पुस्तकालय बनवाए। लेकिन हकीकत क्या है? उसने पुस्तकों से अधिक पुस्तकालय भवनों की विशालता व भव्यता पर क्यों जोर दिया था? इसलिए कि उन पुस्तकालयों पर कार्नेगी  की मुहर लगी हुई थी। क्या यह सच नहीं है कि कार्नेगी  ने अपने कारोबार साम्राज्य को बढ़ाने के लिए हमेशा नैतिक बाजार नीतियों को ही नहीं अपनाया था? फिर उसने धन का शुभ संदेश लिखकर मेहनत बचत  धैर्य से धन कमाने तथा जरूरत से अधिक धन को समाज को बांट देने का नैतिक उपदेश क्यों दिया? क्या यह भी दुनिया से अपने धन कमाने की सच्चाई को इसलिए नहीं छुपाना चाहता था कि सामाजिक बदनामी से बच सके ? जो भी हो, एंड्र्यू कानेंगी का सफलता संघर्ष एवं उसकी उपलब्धियाँ आज भी उद्यमशीलता के इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय बने हुए हैं।

Book Format: PDF

Book Size: 335KB                

Number of pages: 6

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