Anant chetna ki khoj mein By Michel A Singer

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  • Author Name : Michel A Singer

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About Book : "सबसे ज़रूरी यह है : जिस तरह रात के बाद सुबह  का होना निश्चित है, उसी तरह यदि व्यक्ति अपने आप से सच बोले तो वह किसी अन्य व्यक्ति से झूठ नहीं बोल सकता।” - विलियम शेक्सपियर 

नाटक हैमलेट के अंक 1 में पोलोनियम द्वारा अपने पुत्र लेआर्टिस को कहे गए शेक्सपियर द्वारा रचित ये विख्यात शब्द कितने स्पष्ट व साफ़ हैं। ये हमें बताते हैं कि अन्य लोगों से सच्चे संबंध बनाने से पहले हमें स्वयं से सच बोलना चाहिए। इसके बावजूद यदि लेआर्टिस खुद से ईमानदार रहता तो उसे समझ में आया होता कि उसके पिता उसे क्या बताना चाहते थे। आखिरकार, हम किस "स्वयं" के प्रति ईमानदार होते हैं? क्या यह तब उजागर होता है जब हमारा मूड खराब होता है या फिर तब, जब हमें अपनी भूल का एहसास होता है? क्या यह दिल के किसी अंधेरे कोने में से उस समय बोलता है जब हम दुखी या परेशान होते हैं अथवा जीवन के क्षणिक रूप से उमंग भरे और हलके पलों में उभरता है? इन प्रश्नों से हमें पता लगता है कि "आत्मा" की अवधारणा जितनी लगती है, उससे भी ज्यादा भ्रामक है। यदि लेआर्टिस पारंपरिक मनोविज्ञान का रुख करता तो शायद इस विषय पर कुछ अधिक रोशनी पड़ सकती थी। मनोविज्ञान के जनक, फ्रायड (1927) ने मन को तीन भागों में बाँटा : इदम् अहम् और पराहम् फ्रायड ने इदम् को हमारे आदिम, पशु स्वभाव के रूप में देखा; पराहम् समाज द्वारा हमारे भीतर स्थापित न्याय प्रणाली है तथा अहम् बाहरी जगत के समक्ष हमारा प्रतिनिधित्व करता है जो बाकी दो प्रबल शक्तियों के बीच संतुलन बनाता है। परंतु निश्चित तौर पर, इससे युवा लेआर्टिस को कोई मदद नहीं मिली होती। आखिर, इन परस्पर विरोधी शक्तियों में से हमें किसके प्रति ईमानदार रहना  है ? एक बार फिर हम देखते हैं कि चीजें उतनी सरल नहीं हैं जितनी वह दिखाई देती हैं। यदि हम "आत्मा" शब्द की सतह के पार देखने का साहस करें तो ऐसे प्रश्न उठेंगे जिन्हें अधिकतर लोग नहीं पूछना चाहेंगे क्या मेरे अस्तित्व के अनेक : पक्ष समान रूप से मेरी 'आत्मा' के अंश हैं या मैं एक ही हूँ- यदि हाँ तो कौन, कहाँ, कैसे और क्यों? आगामी अध्यायों में हम “आत्मा” की खोज की यात्रा पर चलेंगे परंतु इस काम को हम परंपरागत ढंग से नहीं करेंगे। हम न तो मनोविज्ञान के विशेषज्ञों और न ही महान दार्शनिकों से सहायता लेंगे। हम पुरातन धार्मिक विचारों पर बहस या उनका चयन भी नहीं करेंगे और न ही लोगों द्वारा किए गए सांख्यिकी पर आधारित सर्वेक्षणों का सहारा लेंगे। इन सबके बजाय, हम उस एक स्रोत की ओर चलेंगे जिसे इस विषय की असाधारण व प्रत्यक्ष समझ है। हम उस विशेषज्ञ के पास चलेंगे जो इस महान अनुसंधान के अंतिम समाधान को पाने के लिए जीवन के हर दिन के हर पल में इस विषय से संबंधित आवश्यक सामग्री जुटा रहा है। वह विशेषज्ञ आप हैं!  इससे पहले कि आप ज्यादा उत्तेजित हो जाएँ या सोचने लगे कि आप इस कार्य को करने के योग्य नहीं हैं, इस बात को जान लें कि हम इस विषय पर आपके विचार या मत नहीं जानना चाहते। हमारी इस बात में भी कोई रुचि नहीं है कि आपने कौन-सी किताबें पढ़ी हैं या कौन-से पाठ सीखे हैं या किस गोष्ठी में भाग लिया है। हमारी रुचि तो आपके अंतर्ज्ञान से उत्पन्न सिर्फ़ उन अनुभवों में है कि आपको सहज रहना कैसा लगता है। हमें आपके ज्ञान की ज़रूरत नहीं है, हमें आपका प्रत्यक्ष अनुभव जानना है। देखिए, आप इस कार्य में असफल नहीं हो सकते क्योंकि हर पल और हर जगह, जो आप हैं, वही आपकी “आत्मा" है। हमें सिर्फ़ इसे सुलझाना है, क्योंकि यह बात बहुत उलझ सकती है

इस पुस्तक के अध्याय कुछ और नहीं, बल्कि “आत्मा" को विभिन्न कोण से देखने के दर्पण हैं। हालांकि हमारी यह यात्रा भीतर जाने की यात्रा है, इसमें आपके जीवन का हर पहलू उजागर होगा। आपसे सिर्फ़ इतनी अपेक्षा है कि आप ईमानदारी से स्वयं को बिलकुल प्राकृतिक व सहज रूप में देखें। याद रखिए, यदि हम “आत्मा” की जड़ खोज रहे हैं तो वास्तव में हम आपको खोज रहे हैं। जैसे-जैसे आप इन पृष्ठों को पढ़ेंगे, तो पाएँगे कि आप अत्यंत गहरे विषयों के बारे में इतना कुछ जानते हैं कि आपको स्वयं नहीं पता। सच यह है कि आपको इस बात का पहले से पता है कि अपने आपको किस प्रकार से जानना है; सिर्फ़ आपका ध्यान भंग हो गया है और आप भटक गए हैं। एक बार फिर से ध्यान केंद्रित करने पर आप यह जान जाएँगे कि आपके पास न सिर्फ़ स्वयं को जानने की बल्कि खुद को मुक्त करने की भी क्षमता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसा करना चाहते हैं या नहीं। परंतु इन अध्यायों के माध्यम से अपनी यात्रा को पूर्ण करने के बाद, कोई दुविधा, किसी शक्ति का अभाव या दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति बाकी नहीं रह जाएगी। आपको पता लग जाएगा कि आपको वास्तव में करना क्या है। यदि आप आत्म-बोध की इस यात्रा पर चलने का निर्णय लेते हैं तो आपके मन में अपने के लिए ज़बरदस्त आत्म-सम्मान पैदा हो जाएगा। ऐसा होने के बाद ही आपको इस सलाह का सही व पूरा अर्थ समझ में आ पाएगा- "सबसे जरूरी यह है : खुद से सच बोलना।”

Book Format: PDF

Book Size: 1.54 MB            

Number of pages: 110

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